डेस्क। जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त को मनाया जाएगा। कुछ स्थानों पर कान्हा के जन्मदिन को 11 अगस्त को मनाया जा रहा है, लेकिन अधिकतर स्थानों पर इस पर्व को 12 अगस्त के दिन ही मनाया जा रहा है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए इसे कृष्ण जन्माष्टमी या केवल जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष किस तारीख को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिए ?

जन्माष्टमी व्रत
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सभी आयु के लोग कर सकते हैं, लेकिन जिनको स्वास्थ्य समस्याएं हैं वे इसे न करें तो अच्छा है। वे केवल भगवान की आराधना करें। ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति को बाल कृष्ण जैसी संतान प्राप्त होती है।

जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि
- इस व्रत में अष्टमी के व्रत से पूजन और नवमी के पारण से व्रत की पूर्ति होती है।
- इस उपवास को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व हल्का तथा सात्विक भोजन करना चाहिए। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।

- उपवास वाले दिन प्रातः जल्दी स्नानादि से निवृत होकर सभी देवताओं को नमस्कार करके पूर्व या उत्तर को मुख करके बैठें।
- हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर उपवास का संकल्प करे।
- अब भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।

- यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में कुट्टू के आटे की पकौड़ी, मावे की बर्फ़ी और सिंघाड़े के आटे का हलवा बना कर खाया जाता है।
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