नई दिल्ली। यूआईडीएआई के पास आधार जारी करने वाले ऐसे लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है जिन्हें 12 अंकों की बॉयोमेट्रिक पहचान संख्या नहीं होने के कारण लाभ देने से मना कर दिया गया। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अजय भूषण पांडेय ने उच्चतम न्यायालय को 22 मार्च को इसकी जानकारी दी। न्यायालय ने उनसे पूछा कि क्या इससे जुड़ा कोई आधिकारिक आंकड़ा है कि कितने लोगों को ‘आधार’ नहीं होने या पहचान की पुष्टि नहीं होने पर लाभ देने से इनकार किया गया।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह कहा कि समय के साथ अंगुलियों के निशान हल्के पड़ जाते हैं और आंकड़ों के अपडेट नहीं होने की स्थिति में पहचान की पुष्टि नहीं होने पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। संविधान पीठ को पांडेय ने पावर प्वॉइंट प्रजेंटशन में कहा है कि ऐसे मामलें में कैबिनेट सचिव सहित अन्य अधिकारियों ने अधिसूचना जारी की है।
आधार डेटा को लेकर उत्पन्न शंकाओं को समाप्त करने का आग्रह करते हुए कहा कि आधार पंजीयन करने वाले 6.83 लाख प्रमाणित निजी ऑपरेटरों में से पंजीयन निशुल्क है। वे लोगों से पैसे ले रहे थे। हमें शिकायतें मिल रही थी। इसी के चलते निजी ऑपरेटरों ब्लैकलिस्ट किया गया। आंकड़ों की सुरक्षा के बारे में सीईओ ने कहा कि पंजीयन एजेंसी द्वारा एक बार बॉयोमेट्रिक आंकड़े दिये जाने के बाद उन्हें कूट भाषा में परिवर्तित कर दिया जाता है। यूआईडीएआई आधार कार्ड के जरिये की गई किसी भी लेनदेन पर नजर नहीं रखता है। सीईओ ने कहा कि जुलाई के बाद से अंगुलियों के निशान या पुतलियों के अलावा फोटो के जरिये भी किसी भी व्यक्ति की पहचान हो सकेगी और उसे लाभ से वंचित नहीं किया जाएगा।